तीन धड़कनें, एक कहानी ❤️💔💙
छोटे से पहाड़ी शहर में बसे मुस्कान, राघव और कबीर की दोस्ती बचपन से थी। तीनों हमेशा साथ रहते, हंसते, खेलते और एक-दूसरे के बिना अधूरे से लगते। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, यह दोस्ती एक जज़्बात में बदलने लगी—एक ऐसा एहसास जो सिर्फ दोस्ती से कहीं आगे था।
पहला एहसास
मुस्कान को हमेशा राघव की बातें अच्छी लगती थीं। उसकी हंसी, उसकी शरारतें, और वह अपनापन जिससे वह उसे देखता था। लेकिन दूसरी तरफ कबीर भी था—शांत, समझदार और हर मुश्किल में मुस्कान का सहारा।
राघव ने कभी खुलकर नहीं कहा, लेकिन उसकी आँखों में एक खास जगह थी सिर्फ मुस्कान के लिए। वहीं, कबीर ने हमेशा मुस्कान के करीब रहने की कोशिश की, उसकी हर ख़ुशी और हर आंसू में शामिल रहा।
इज़हार और उलझन
एक दिन बारिश में भीगते हुए राघव ने मुस्कान का हाथ पकड़कर कहा, "मुस्कान, मुझे नहीं पता यह प्यार है या नहीं, लेकिन तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ।"
मुस्कान के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं, लेकिन तभी कबीर ने भी उसे अकेले में कहा, "तुम जानती हो न, मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ?"
मुस्कान उलझ गई। एक तरफ राघव था, जो उसकी हंसी की वजह था, और दूसरी तरफ कबीर, जो उसकी हर ख़ामोशी को समझता था।
एक कठिन फैसला
वह दोनों को नहीं खोना चाहती थी। उसके दिल में दोनों के लिए जगह थी, लेकिन क्या प्यार में ऐसा मुमकिन है?
अंत में, उसने उनसे एक बात कही—"मैं तुम दोनों को खो नहीं सकती। अगर प्यार सिर्फ एक के लिए हो सकता है, तो शायद मैं प्यार के काबिल नहीं हूँ।"****"
राघव और कबीर ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए। वे समझ गए कि कुछ रिश्ते प्यार से ऊपर होते हैं—जहां कोई हारता नहीं, कोई जीतता नहीं, बस साथ बना रहता है।
अधूरी या पूरी?
मुस्कान ने किसी को नहीं चुना, लेकिन फिर भी उसने दोनों को पा लिया। तीनों ने दोस्ती और प्यार के बीच की इस महीन रेखा को समझा और अपने रिश्ते को किसी नाम में बांधने की कोशिश नहीं की।
कभी-कभी, कुछ कहानियाँ अधूरी नहीं होतीं—बस, उनका अंत वैसा नहीं होता जैसा हम सोचते हैं। 💙❤️💔
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