मोहब्बत की सरगम
अध्याय 1: पहली मुलाकात
बारिश की हल्की बूँदें दिल्ली की सड़कों को चूम रही थीं, और एक हल्की ठंडक हवा में घुली थी। आयुष अपनी बाइक पार्क करके कॉफी शॉप में दाखिल हुआ, जहाँ हल्की रोशनी और धीमी संगीत की धुनें माहौल को और भी खास बना रही थीं।
तभी उसकी नजर सिया पर पड़ी—एक लड़की जो खिड़की के पास बैठी थी, एक किताब में खोई हुई। उसके बाल हल्की नमी से भीगे थे, और उसकी आँखों में एक अनकही कशिश थी।
आयुष बिना सोचे उसके पास गया और मुस्कुराकर बोला, "बारिश और किताबें, बेहतरीन जोड़ी है।"
सिया ने किताब से नजरें उठाईं और हल्का सा मुस्कुराई, "और एक गर्म कॉफी भी।"
आयुष ने सिर हिलाया, "अगर आप चाहें तो एक कॉफी मेरी तरफ से।"
सिया ने शरारती अंदाज में कहा, "अगर कॉफी अच्छी लगी तो शायद तुम्हारा नाम भी पूछ लूँ।"
और यहीं से उनकी कहानी की पहली धुन बज उठी।
अध्याय 2: करीबियाँ
उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। कॉफी की चुस्कियों के बीच उनकी हँसी, छेड़छाड़ और हल्की-हल्की छू जाने वाली बातें… हर मुलाकात में एक नई गर्माहट थी।
एक शाम, जब दोनों मरीन ड्राइव पर टहल रहे थे, सिया ने हल्के से आयुष की जैकेट पकड़ ली।
"तुम्हें पता है, जब तुम मुझे यूँ देखते हो, तो लगता है जैसे कोई धुन मेरे अंदर बज रही हो," सिया ने धीमे से कहा।
आयुष ने उसकी आँखों में झाँका, "और जब तुम पास होती हो, तो लगता है जैसे वो धुन किसी अधूरी कविता को मुकम्मल कर रही हो।"
हवा ठंडी थी, लेकिन उनके बीच बढ़ती नज़दीकियाँ उन्हें गर्म रख रही थीं।
अध्याय 3: छू लेने की ख्वाहिश
उस रात जब आयुष सिया को उसके अपार्टमेंट छोड़ने आया, बारिश फिर से तेज हो चुकी थी।
सिया ने बालों को झटकते हुए कहा, "फिर से भीग गई।"
आयुष ने अपनी जैकेट उतारकर उसके कंधों पर डाल दी। लेकिन इस बार उसके हाथ सिया के चेहरे के पास रुके रह गए।
"अगर मैं तुम्हारे गीले बालों को अपनी उँगलियों से सुलझाना चाहूँ, तो क्या तुम मुझसे नाराज़ होगी?" आयुष ने धीमे से कहा।
सिया ने गहरी साँस ली, उसकी पलकें हल्के से झपकीं। "पता नहीं… पर शायद मुझे अच्छा लगेगा।"
आयुष ने धीरे-धीरे उसकी जुल्फों में अपनी उँगलियाँ फेरीं। सिया की साँसें थोड़ी तेज हो गईं।
"तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श... जैसे कोई कविता मेरे बदन पर लिखी जा रही हो," सिया ने हल्के से कहा।
आयुष मुस्कुराया, "और मैं चाहता हूँ कि यह कविता कभी खत्म न हो।"
अध्याय 4: मोहब्बत का एहसास
उनकी मुलाकातें अब केवल हँसी-मज़ाक तक सीमित नहीं थीं। उनके बीच की हर बात, हर छू जाने की हल्की सी झनझनाहट अब एक अलग ही आग पैदा कर रही थी।
एक शाम, जब आयुष ने सिया को अपनी बाहों में भर लिया, उसने उसके कानों में फुसफुसाया, "क्या तुम जानती हो कि जब तुम मेरे इतने करीब होती हो, तो मैं खुद को रोक नहीं पाता?"
सिया ने उसकी आँखों में देखा, उसकी साँसें उलझने लगीं।
"तो मत रोको," उसने धीमे से कहा, और उसकी आवाज़ में एक मोहक सरसराहट थी।
आयुष ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया और अपने होंठ उसके गालों पर रख दिए, उसकी त्वचा की नर्मी को महसूस करते हुए।
सिया के होंठों से एक हल्की आह निकली, और उसने अपनी उँगलियाँ आयुष के बालों में फेर दीं।
बारिश की बूँदें अब भी गिर रही थीं, लेकिन अब वे गीले होने की परवाह नहीं कर रहे थे।
उनकी मोहब्बत अब शब्दों से आगे बढ़ चुकी थी… यह अब अहसास बन चुकी थी।
समाप्त।
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